Tuesday, January 20, 2009

गधा, बंदर या चूहा होगा राष्ट्रीय पशु!


हमारा राष्ट्रीय पशु कौन? बाघ... जी नहीं, यह जवाब बदलने जा रहा है। जैसे एक समय में बबर शेर हमारा राष्ट्रीय पशु हुआ करता था, वैसे ही अब बाघ भी पूर्व राष्ट्रीय पशुओं की सूची में टंगने जा रहा है। और दिल थाम लीजिए... बाघ को वीआरएस देकर उसकी कुर्सी हथियाने के लिए गधे, बंदर, चूहे और बकरी के बीच कांटे की टक्कर है।

20वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप से 39 हजार बाघ विलुप्त हो चुके हैं। हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा कराई गई गणना से खुलासा हुआ है कि मात्र पिछले छह साल में ही भारत में बाघों की 50 फीसदी संख्या कम हो चुकी है। इनकी संख्या एक हजार से भी कम बची है। अकेले मध्य प्रदेश में 65 प्रतिशत बाघ धरती से विलुप्त हो गए हैं। यहां के जंगलों और संरक्षित वन क्षेत्रों में सिर्फ 296 बाघ ही बचे हैं। जबकि कुछ समय पहले तक यह आंकडा संख्या 7 सौ था। राजस्थान में 100-100 से भी कम बाघ बचे हैं।

इन भयावह आंकड़ों को देखते हुए नए राष्ट्रीय पशु की खोज के लिए यह अभियान शुरू होने जा रहा है, जिसमें देश के नागरिकों को इन चारों पशुओं यानी गधे, बंदर, बकरी और चूहे में से किसी एक को राष्ट्रीय पशु के रूप में चुनना होगा। इसके लिए आपको न्यू नेशनल एनीमल डॉट कॉम पर जाकर अपने पसंदीदा पशु के पक्ष में वोट डालना होगा। सुनने में यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन वन्य जीव जंतु संरक्षण क्षेत्र में कार्यरत प्रतिष्ठित पत्रिका सेंक्च्यूरी एशिया ने राष्ट्रीय पशु बाघ को विलुप्त होने से बचाने के लिए यह व्यंग्यात्मक अभियान शुरू करने का फैसला किया है। उपरोक्त साइट पर एक संदेश के साथ चारों पशुओं के चित्र भी उपलब्ध कराए गए हैं। ऑनलाइन वोटिंग के साथ ही इस वेबसाइट से ऑनलाइन याचिका भी दाखिल की जा सकती हैं, जिन्हें बाद में सेंक्च्यूरी एशिया प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजेगा और साथ ही प्रधानमंत्री से इस दिशा में ठोस कदम उठाने की अपील की जाएगी। कोई गधा या चूहा कैसे बाघ की जगह ले सकता है, इसी विडंबना की ओर लोगों का ध्यान दिलाया जाएगा। जितने अधिक वोट मिलेंगे, उतना ही बाघ की दयनीय हालत की ओर देश का ध्यान जाएगा।

यह एक व्यंग्यात्मक लेकिन गंभीर प्रयास है, जिसमें परोक्ष रूप से सवाल उठाने की कोशिश की गई है कि यदि बाघों का शिकार वनों का विलुप्त होना और राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव इसी प्रकार जारी रहा तो बाघ सिर्फ किस्से-कहानियों में ही मिलेंगे।

वैसे बाघ को देश का राष्ट्रीय गौरव मानने वाले लोगों को इस अभियान से परेशान नहीं होना चाहिए। यह ऑनलाइन अभियान असल में बाघ से उसका राष्ट्रीय पशु का खिताब नहीं छीनने जा रहा है, बल्कि यह विषय की गंभीरता की ओर व्यापक पैमाने पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का एक कटाक्ष आधारित उपाय है।

कुल मिलाकर शक्ति का प्रतीक और बहादुरी की मिसाल माना जाने वाला जंगल का राजा बाघ आज अपने अस्तित्व की अंतिम लड़ाई में हमारा साथ चाहता है। अंतिम लड़ाई इसलिए क्योंकि ताजा अनुमान के मुताबिक आज भारत में बाघों की संख्या केवल 1000 के लगभग रह गई है। अब घटते शिकार व सिकुड़ते वन्य क्षेत्र के कारण खाने की तलाश में हिंसक पशु गाँवों की ओर आ जाते हैं और मवेशियों का शिकार करते हैं, नतीजतन बाघों और इनसानों की बढ़ती मुलाकातें, जिनमें अकसर कोई जान जाती है या तो किसी इनसान की या किसी बाघ की।

अब सवाल यह है कि आखिर इस होने वाली तबाही को कैसे रोका जाए। जंगल और वन्य जीवों को बचाना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी नहीं है। इसका बीड़ा हर किसी को उठाना पड़ेगा। कब तक हम सिस्टम और नेताओं को दोष देते रहेंगे। आखिर सिस्टम हममें से कुछ लोगो ने ही बनाया है और नेता भी आम जनता से चुने जाते हैं। सबसे पहले तो जंगल और उसमें रहने वाले प्राणियों के बारे में लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। अगर सभी लोगों को इस समस्या के दूरगामी परिणाम पता होंगे तो निश्चित रूप से राजनैतिक पार्टियों के घोषणा-पत्रों में इस मुद्दे को भी प्रमुखता से स्थान मिलेगा और सत्ता में आने पर कोई ठोस कदम उठाया जाएगा।
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