
एक बार फिर उड़ता-फिरता अजहदा यानी मौत का ताबूत यानी मिग विमान अपनी वाली पर आ गया। वो तो भला हो पायलटों का, जो कूद-कूद कर जान बचाना सीख गए हैं और आम जनता का, जो मिग को उड़ान भरते देख ही उलटी दिशा में उड़ान भर लेती है।
भारतीय वायुसेना का प्रशिक्षक विमान मिग-27 सोमवार को अपने पायलटों और क्षेत्रवासियों की अलर्टनेस का प्रशिक्षण करने निकला। इस बार निशाने पर थे विंग कमांडर सिसौदिया, फ्लाइट लेफ्टिनेंट कार्तिक और पश्चिम बंगाल में अलीपुरद्वार के नरारथली क्षेत्रवासी। जलपाईगुड़ी जिले के हाशिम आरा एअर बेस से उड़ान भरकर जब वरिष्ठ विमान चालक जूनियर को प्रशिक्षण दे रहा था तो मिग मियां मक्कारी पर उतर आए। उड़ते-उड़ते अचानक झटका खाया, आउट ऑफ कंट्रोल हुए और आग उगलते हुए चल पड़े धरा को चूमने औंधे मुंह। चालक और सह चालक के दिमाग में फौरन मिग के सहोदरों की कारगुजारियों के कफन में लिपटे अपने दोस्तों शहादत घूमने लगी। उन्होंने आव देखा न ताव, तत्काल कूद पड़े। सही भी है- राख का ढेर बनने से तो अच्छा है कि कुछ हड्डियां ही चूरा हो जाएं। इधर, आग का गोला बना मिग-27 जमीन की तरफ बढ़ता जा रहा था... भला हो नरारथला के उस कच्चे मकान का जिसने धधकते हुए बेकाबू उड़न ताबूत को थाम लिया। उसमें रहने वाले लोग हादसे के दौरान खेत में काम कर रहे थे। दो किलोमीटर तक विमान का मलबा बिखरा पाया गया। अब ब्लैक बॉक्स की तलाश की जा रही है ताकि सांप निकलने के बाद लकीर पीटी जा सके।
अब तक मिग-21 दुर्घटनाओं के लिए कुख्यात रहा है लेकिन मिग-23, मिग-27 और मिग-29 भी अपने बड़े भाई की राह पर चल पड़े हैं। सेना के बेड़े में शामिल जगुआर, मिराज-2000 और आईएल-76 भी कभी-कभी मिग बिरादरी की नकल करने की जिद करते नजर आते हैं। इस तरह सभी मिलकर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी भारतीय वायुसेना की हवा निकालने में जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि उत्तरी बंगाल के दूआर्स क्षेत्र में इस साल मिग विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का यह तीसरा मामला है। सरकारी इतिहास की बात करें तो वर्ष 1991 से 2008 के बीच करोड़ों डॉलर मूल्य के लगभग 300 मिग विमान दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं, जबकि इनमें तक़रीबन 200 पायलटों समेत आम लोगों को भी जान गंवानी पड़ी।
गैरसरकारी आंकड़ों पर जाएं तो अब तक भारत में मिग दुर्घटनाओं में 723 लोगों की जान जा चुकी है और हर बार मिग कंपनी ने कहा है कि दुर्घटना पायलटों की गलती से हुई है क्योंकि भारतीय पायलटों को आधुनिक विमान उड़ाने की पूरी बुद्वि नहीं हैं। मिग कंपनी ने अब तक भारत में वायु सेना के भीतर होने वाली मिग विमान दुर्घटनाओं के सिलसिले में खुद कोई जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया हैं। उनका कहना है कि भारतीय पायलटों को इतने आधुनिक विमान उड़ाने ही नहीं आते।
आखिर ऐसा क्या लाड़-प्यार है इस उड़न ताबूत से? क्यों इसे हर बार हमारे होनहार पायलटों और निरीह जनता को स्वाहा करने के लिए छोड़ दिया जाता है? कब तक दलाली की तराजू में लाशों का सौदा होता रहेगा? बेहतर हो कि वायुसेना इन सौतेले पूतों पर विश्वास करने के बजाय तेजस जैसे अपने सपूतों को सक्षम बनाने में ध्यान दे।
भारतीय वायुसेना का प्रशिक्षक विमान मिग-27 सोमवार को अपने पायलटों और क्षेत्रवासियों की अलर्टनेस का प्रशिक्षण करने निकला। इस बार निशाने पर थे विंग कमांडर सिसौदिया, फ्लाइट लेफ्टिनेंट कार्तिक और पश्चिम बंगाल में अलीपुरद्वार के नरारथली क्षेत्रवासी। जलपाईगुड़ी जिले के हाशिम आरा एअर बेस से उड़ान भरकर जब वरिष्ठ विमान चालक जूनियर को प्रशिक्षण दे रहा था तो मिग मियां मक्कारी पर उतर आए। उड़ते-उड़ते अचानक झटका खाया, आउट ऑफ कंट्रोल हुए और आग उगलते हुए चल पड़े धरा को चूमने औंधे मुंह। चालक और सह चालक के दिमाग में फौरन मिग के सहोदरों की कारगुजारियों के कफन में लिपटे अपने दोस्तों शहादत घूमने लगी। उन्होंने आव देखा न ताव, तत्काल कूद पड़े। सही भी है- राख का ढेर बनने से तो अच्छा है कि कुछ हड्डियां ही चूरा हो जाएं। इधर, आग का गोला बना मिग-27 जमीन की तरफ बढ़ता जा रहा था... भला हो नरारथला के उस कच्चे मकान का जिसने धधकते हुए बेकाबू उड़न ताबूत को थाम लिया। उसमें रहने वाले लोग हादसे के दौरान खेत में काम कर रहे थे। दो किलोमीटर तक विमान का मलबा बिखरा पाया गया। अब ब्लैक बॉक्स की तलाश की जा रही है ताकि सांप निकलने के बाद लकीर पीटी जा सके।

गैरसरकारी आंकड़ों पर जाएं तो अब तक भारत में मिग दुर्घटनाओं में 723 लोगों की जान जा चुकी है और हर बार मिग कंपनी ने कहा है कि दुर्घटना पायलटों की गलती से हुई है क्योंकि भारतीय पायलटों को आधुनिक विमान उड़ाने की पूरी बुद्वि नहीं हैं। मिग कंपनी ने अब तक भारत में वायु सेना के भीतर होने वाली मिग विमान दुर्घटनाओं के सिलसिले में खुद कोई जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया हैं। उनका कहना है कि भारतीय पायलटों को इतने आधुनिक विमान उड़ाने ही नहीं आते।
आखिर ऐसा क्या लाड़-प्यार है इस उड़न ताबूत से? क्यों इसे हर बार हमारे होनहार पायलटों और निरीह जनता को स्वाहा करने के लिए छोड़ दिया जाता है? कब तक दलाली की तराजू में लाशों का सौदा होता रहेगा? बेहतर हो कि वायुसेना इन सौतेले पूतों पर विश्वास करने के बजाय तेजस जैसे अपने सपूतों को सक्षम बनाने में ध्यान दे।
2 comments:
वाह भाई साहब! बड़े रोचक ढंग से गंभीर बात लिख दी।
यह मौत का नहीं रिश्वत का ताबूत है जनाब। इस ताबूत ने नेताजी के लिए नोट उगले हैं और देशभक्तों की लाश निगली है। क्यों सही बात है ना?
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