Tuesday, October 21, 2008

आरी को काटने के लिए सूत की तलवार???


मुंबई के निवासी अपनी भागदौड़ भरी जिंदगी जी रहे थे कि तभी एक नए नाटक ने उनकी जिंदगी दुश्वार बना दी। सुबह घर से निकलने में डर, तो शाम को वापस घर आते समय दहशतजदा माहौल। ऐसा सिर्फ एक सिरफिरी मानसिकता के चलते हुआ, जिसे रोक पाने में पूरा तंत्र जानबूझकर असफल रहा। जो भी प्रयास हुए वे सिर्फ आरी को काटने के लिए सूत की तलवार के समान ही थे।

एक जमाना था जब मुंबई में मातुश्री बिल्डिंग कानून से भी ऊंची थी। यहां से पाइप से छल्ले उड़ाते शेर के मुंह से निकलती दहाड़ गैर मराठियों को दहला देती थी। समय बदला... लेकिन खुद की अहमियत बनाए रखने के लिए लोगों को आतंकित करने का तरीका वही पाशविक रहा। अब की बार बिना स्टीयरिंग वाली बीएमडब्ल्यू कार पर भतीजा सवार है। उसकी जबान में न ब्रेक शू हैं और न ही गले में सायलेंसर। वह भी आग उगल कर और अंगारे ग्रहण कर चाचा के अतीत को बिंदास जीना चाहता है।

कबीर बरसों पहले कह गए थे- जात न पूछो साधु की... तब उन्हें यह पता नहीं था कि चंद्रयान भेजने और परमाणु करार के दौर में जब भारत होगा तब भी उनका यह कथन प्रासंगिक होगा। समाज में हजार तरह के समाज सुधारक हुए जिन्होंने जन्म से जाति निर्धारण का विरोध किया लेकिन ये विष बेल फलती फूलती रही और आज विशाल वटवृक्ष में बदल चुकी है। वोट बैंक बनाने की घृणित राजनीतिक लालसा ने इसे और विकराल रूप दे दिया है। इसकी शाखों पर तमाम तरह के स्मगलर, माफिया, डॉन और गुंडे आराम फरमा रहे हैं। और ये जात ‘भाई’ मुंबई को अपनी बपौती समझने लगे। अब इनके इस भाईचारे का प्रभाव पूरी इन्सानियत भुगतने को मजबूर है।

जिन युवाअों में कभी समाज को बदल डालने की आग धधका करती थी, वे जाति अरण्य में विक्रम की तरह अपने-अपने समाजों की लाश कंधों पर उठाए भटक रहे हैं। अब इन नौजवानों से ये शव कोई दूसरा दयानंद या लोहिया ही छीन सकता है। पर तब तक हो सकता है बहुत देर हो जाए...

14 comments:

Neeraj said...

kashetrwad ki aag lagane walo par lagam kasna hi hogi.der hui to desh fir gulam ho jaiga.lashen bichati rahengi or jantta ki lasho par raj jaise neta rotian sekenege.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

भाई ,हमारे भाईलोगों ने अपने शहर../अपने मोहल्ले..अपने राज्य....अंततः अपने देश को भी अपनी संकीर्ण सोच की वजह से अखाडा बना रखा है....उन्हें ये नहीं पता होता कि जब अन्य जगहों पर इसकी प्रतिक्रिया होगी ..तब क्या होगा ....क्रिया..फिर प्रतिक्रिया.........क्रिया..फिर प्रतिक्रिया.........क्रिया..फिर प्रतिक्रिया.........क्रिया..फिर प्रतिक्रिया.....एसा होता ही चला गया तो अंततः देश का क्या होगा ...!!

श्यामल सुमन said...

यह सच है कि राज ठाकरे क्षेत्रीयता की आग महाराष्ट्र में भडकाकर अपनी रजनीतिक दुकान चलाना चाहते हैं। स्थानीय सरकार भी न जाने किस वजह से चुपचाप तमाशा देख रही है। आज यह आग पूरे देश को अपने लपेटे में लेने को बेताब है। फिर भारत का क्या होगा? क्या भारत भी रूस की तरह टुकडों में बँट जायगा? यहीं पर साहित्यकर्मियों, रंगकर्मियों, संस्कृतिकर्मियों के सजग होने की जरूरत है, क्योंकि मीडिया भी अपनी नकारात्मक भूमिका के लिए बदनाम है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Smart Indian said...

यह "pound foolish, penny wise" मूर्ख अपनी आनेवाली पीढियों की कब्रें खोद रहे हैं.

makrand said...

bahut accha lekh

ambreen said...

Very well written piece. Infact it is the the hard truth of life in present times. What Raj Thackarey is doing is something so naive and unacceptable. But I guess this is how we are, big shots can take law in their hands and go away with it. This very Mumbai which was a safe haeven till few years back is now a terrorised place not only for the north indian but also for the natives. In fact Balasaheb Thackerey doesn't approve of this kind of politics and violence. Some people can stoop to any level just get that mileage in their political careers.

Unknown said...

ya its very nice artical by u...hope so we'll always read such types...

रश्मि प्रभा... said...

ab sirf 'main'ki taakat hai,wo bhi ghrinit
achha likha hai aapne

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

bahut satil maamla uthaya hai aapna , ye kheshtriyataa ki aag kya kya jalaayegi

Unknown said...

यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज समाज में व्यक्ति नफरत करके बड़ा बनता है, प्रेम करके नहीं. नफरत से भरे भड़काऊ बयान दो, लोग एक दूसरे से लड़ने लगें, कुछ लोग मर जाएँ, बस हो गए बड़े. सरकार ऐसे मामलों में चुप रह कर बड़ी बनती है. विरोधी पक्ष चिल्ला कर बड़ा बनता है. इस चुप रहने और चिल्लाने में भी नफरत ही भरी होती है.

Manuj Mehta said...

bahut sahi kaha bhai aapne, bahut hi umda lekh meri kavita bhi isi vishay par hai
www.merakamra.blogspot.com

रंजना said...

बहुत सही और बड़ा प्रभावी लिखा है आपने.
अब क्या करें जिनके हाथ में सत्ता पवार है,जो कि इस विघटनकारी तत्वों को तोड़ सकते हैं,वे तो कुछ करते नही बल्कि कई तो इसके संयोजक ही हैं,तो हम आम जनता अपना खून जलने के शिवा और क्या कर सकते हैं.और अब तो देखिये न,वहां से तो पिटकर भाग आए और ये गैर मराठी ही अपने क्षेत्रों में कैसा तांडव मचह्ये हुए हैं .देश की संपत्ति को जला रहे हैं,सड़क रेल वगैरह सारा यातायात ठप्प किए दे रहे हैं और मोर्चे निकाल निकाल कर आम जनजीवन को त्रस्त कर रहे हैं.जो राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में किया अब बिहार उप वाले यहाँ कर रहे हैं,बजाय इसके कि यदि सबक सिखाना है तो उसी राज ठाकरे को जाकर सबक सिखाएं.
किसे क्या कहें......बताइए न.....

भीमसिंह मीणा said...

महेशजी आपका कहना एकदम उचित है क्योंकि महाराष्ट्र में न पहले किसी की परवाह की गई और न अब की जा रही है। ठाकरे परिवार अपने स्वार्थ के लिए गैर मराठियों को निशाना बना रहा है लेकिन इसका परिणाम राज ठाकरे को नही आम मराठियों को भुगतना पड़ेगा। ऐसा ही कुछ हाल मध्यप्रदेश में हो जाता गर यहाँ के लोग इनकी बातो में आ जाते, फ़िर भी राजगड का हाल किस्से छिपा है जहाँ का एक विधायक अपने मतलब के किसी को भी दिन दहाड़े मरता है और बीजेपी और कोंग्रेस कुछ नही कर पाती है।
खैर ये आग तो हर जगह फैली है लेकिन आपने शानदार तरीके से उनके नजरिये को उजागर किया है।
bheem

Ajay Garg said...

achchha likha hai mahesh... carry on!!

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