Friday, October 17, 2008

लिव इन v/s करवा चौथ!






पहली‍ किस्त




चांद निकलने में अभी कुछ समय बाकी था... इधर, सजी-धजी विवाहिताओं को देखकर करवा चौथ इठला रही थी, उधर गुस्से से लाल ‘लिव इन रिलेशन’ झल्लाते हुए कह रही थी- आखिर ऐसा क्या है तुममें जो तुम्हारे आते ही हर विवाहिता के मन में एक अजीब सी हलचल होने लगती है? क्यों उनका मन साज-श्रंगार करने के लिए लालायित होने लगता है? नवविवाहिताओं को तो जैसे बस इंतजार रहता है शरमाकर बादलों के घूंघट में छिपे चंद्रमा का सुंदर मुखड़ा देखने का। उन्हें न भूख, न प्यास का अहसास होता है।

करवा ने शांत भाव से कहा- तुम नहीं समझोगी। यह एक ऐसा पावन दिन है जब पति की आयु के लिए की गई प्रार्थना प्रभु स्वीकार करते हैं और यही विवाहिता के लिए बड़ा वरदान है। इसे कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन छोटी बहू, परिवार की बड़ी बहू या फिर सास को करवा और मिष्ठान्न प्रदान कर अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती है। चौथ के एक दिन पहले ही महिलाएं मेहंदी लगवाकर अपनी सजी हथेली से पूजन करती हैं। सुहागिनें मंदिर लाल कपड़े पहन कर मंदिर में पूजा करने आती हैं अपनी थाली के साथ। लाल रंग के परिधान इसलिए, क्योंकि लाल रंग शुभ व सुहाग का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो चौथ का व्रत सुबह के चार-पांच बजे के बाद शुरू होता है क्योंकि सूरज के निकलने से पहले महिलाएं खाना खा सकती हैं। व्रत रात के दस बजे के आस-पास तक चलता है। रात के चांद और अपने चांद से पति को देख कर पूजा करने के बाद हर सुहागन जी भर के खाती है। यही नहीं समय में आए बदलाव के अनुसार अब पुरुष भी अपनी पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं और अपनी पत्नी की भावनाओं, उनकी आकांक्षाओं का ख्याल रखते हुए दोनों एक-दूजे के साथ-साथ, एक-दूजे के हाथ से व्रत का समापन करते हैं।
बस-बस... बहुत हो गया... अब रहने भी दो ये दकियानूसी बातें। ‘लिव इन’ तुनक कर बोली। ...और क्या होता है ये ‘विवाहिता’? कैसा परिवार? कैसा सुहाग और सुहागन? और सास! वो तो आउट ऑफ डेट हो गई है बेबी। लिव इन में कोई झंझट ही नहीं। आज की औरत लाल कपड़े पहनती है तो इ‍सलिए कि इसमें वो हॉट और सेक्सी लगती है। वो मंदिर नहीं पब में जाती है, दर्शन करने नहीं- दर्शन कराने। मेहंदी तो ओल्ड फैशन है यार! कमर के बहुत नीचे या छाती पर सिजलिंग टैटू गुदवाना इज इन फैशन। इस मदहोशी में सारी रात जागना तो हो ही जाता है। अरे चांद देखने की जरूरत क्या है? डिस्को थेक की चमक है न। और सुहाग? लिव इट यार... हर रात एक ही चेहरा देखकर बोर नहीं हो जाती हो तुम?
To be continued…

8 comments:

Manoj Pamar said...

महेश भाई
बहुत पुरानी है कहावत है देर आयद दुरुस्त आयद। देर से ही सही पर आपके ब्लॉग पर कुछ पढ़ने के लिए मिला, इसके लिए आपको बधाई। मौका भी था और दस्तूर भी, सो आपने करवा चौथ के बहाने ही सही संस्कृति के द्वंद्व को बेहतर ढंग से सामने रखा है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस लिव-इन कल्चर को पश्चिम ने निहित बुराइयों के चलते त्याग-सा दिया है, उसी कल्चर को कथित विकासवादी भारतीय अपनाने की ओर अग्रसर है। हालांकि महाराष्ट्र सरकार को अपने इस फैसले से पीछे हटना पड़ा है लेकिन यक्ष प्रश्न यही है कि आखिर इसकी जरूरत ही क्या है। करवा चौथ भारतीय पत्नी के त्याग और समर्पण का सुखद पहलू है,जो पश्चिम का अंधानुकरण करने वाले नहीं समझ सकते। इसलिए हे महेश, ऐसे लोगों को छोड़ दो जो खुद नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। अगली किस्त के इंतजार में

सुजाता said...

वो मंदिर नहीं पब में जाती है, दर्शन करने नहीं- दर्शन कराने।
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ओह तो यह आपकी मान्यता है क्या कि जो मन्दिर नही जाती वह पब ही जाती होगी या आप बकी समाज के बिहाफ पर कह रहे हैं। कहीं पर जाना ऐसा प्रतिबद्ध होकर क्या ज़रूरी है?

ambreen said...

Nice article. yes there must a strong insecurity associated with the girls having a live in relationships. I simply just dont agree with this concept.A blissful wedded life is something every girl aspires for and should work towards it. Just leave the live in...

Unknown said...

जो करवा ने कहा वह समझ में आया, पर लिव-इन की बात कुछ अजीब लगी. क्या बाकई में लिव-इन वाली नारियां ऐसा सोचती हैं. क्या लिव-इन परिवार और विवाह के ख़िलाफ़ नारियों को पुरुषों के बराबर का दर्जा पाने की कवायद है?

Dr. Amar Jyoti said...

घोर दकियानूसी सोच।स्त्री पर वही पुरानी सामँती मान्यतायें थोपने की कोशिश।

ज्ञान said...

सुजाता जी,
मैं अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ, टिप्पणी करने से।

जब कोई अपनी पत्नी (या कथित अन्दर-रहने वाली) से कहे कि
-मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
-इसके बावज़ूद अगर तुमने बेवफ़ाई की तो,
-मैं तुम्हें जान से मार दूँगा!

तो वो क्या करेगी?
A. खुश होगी कि वह उसे बहुत चाहता है।
B. चिंतित होगी कि इसे कोई गलतफहमी तो नहीं?
C. पुलिस में जाकर FIR करवा देगी, अपनी सुरक्षा के लिये!

उत्तर देने में सुविधा हो इसलिये यदि कोई लिखता है कि
^^करवा चौथ के आते ही हर विवाहिता के मन में एक अजीब सी हलचल होने लगती है।
**तो क्या इसका मतलब होता है कि लिखने वाले की मान्यता है, अविवाहिता के मन में ज़रूर हलचल नहीं होती?
^^नवविवाहिताओं को तो जैसे बस इंतजार रहता है शरमाकर बादलों के घूंघट में छिपे चंद्रमा का सुंदर मुखड़ा देखने का।
**तो क्या इसका मतलब होता है कि लिखने वाले की मान्यता है, जो नहीं शरमातीं वे ज़रूर भरी दोपहरी में सूरज का चेहरा देखतीं हैं
^^पूजा करने के बाद हर सुहागन जी भर के खाती है।
**तो क्या इसका मतलब होता है कि लिखने वाले की मान्यता है, हर सुहागन बाकी दिन ज़रूर जी भर के नहीं खातीं?
^^वो मंदिर नहीं पब में जाती है
**तो क्या इसका मतलब होता है कि लिखने वाले की मान्यता है, जो मन्दिर नही जातीं वे ज़रूर पब जाती हैं?

आप ही के शब्द हैं ना?
अगर आपकी ऐसी (**)सोच है तो निहायत अफसोसनाक है और निन्दनीय भी ।
अगर उपरोक्त (**)विचारों वाले बुद्धि के अनुसार कहना चाहूँ तो यह आग लगाने वाली भाषा और सोच है ।
बुद्द्धिवान जनों को इससे बचना चाहिये !!

अभी तक तो आपको बुद्द्धिवान मान रहा हूँ, लेकिन खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी भाषा भी अन्य नारी समान ही है।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

ज्ञान जी के तर्क से सहमत।

यहाँ लेखक ने दो ‘ध्रुवों’ के बीच तुलना दिखाने की कोशिश की है जिसके बीच में एक बहुत बड़ा मध्यमार्ग भी पड़ता है। इससे लेखक ने कहीं इन्कार नहीं किया है, लेकिन सुजाता जी ने यह समझ लिया कि लेखक ने पूरे नारी समाज को इन्‍ही दो श्रेणियों में बाँट दिया है।

इसी शंकालु सोच के कारण आज का तथाकथित नारीवाद हँसी का पात्र बन रहा है; जो वस्तुतः ‘पुरुषविरोधवाद’ से बाहर नहीं निकल पा रहा है।

makrand said...

bahut gambhir lekh
well composed
regards
visit our liv in karva choth
makrand

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