इस राज से उस राज तक कई राज हैं...
इस राज को इसलिए गोलियों से भून डाला गया क्योंकि वह बिहार से आकर मुंबई में एक बस को अगवा करना चाहता था। लेकिन उस राज का क्या जो पूरी मुंबई को अगवा करना चाहता है? जो बीसीयों बार सार्वजनिक रूप से विषवमन कर चुका है कि मुंबई उसके बाप की है? उसके इस पारिवारिक बड़बोलेपन के कारण मुंबई आकंठ जातीयता के जहर में डूब चुका है। इस जहर से मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम एक हैं का दावा करने वाले इस देश में दो तरह के कानून हैं। एक- सड़कों पर घिसटने वाले आम आदमी के लिए और दूसरा- वीआईपी के लिए। वीआईपी यानी वो- जो नेताजी हों, भाई-दादा हों, बिजनेसमैन हों या फिर जिनके बिस्तर में रूई की जगह रुपए भरे हों।
दूसरी तरह की उच्च क्वालिटी वाले महापुरुष की अव्वल तो गिरफ्तारी होती नहीं, बहुत ही जरूरी हुआ तो गिरफ्तारी की रस्म अदायगी कर दी जाती है लेकिन उन्हें ले जाया जाता है- खाकी वर्दी वालों की बग्घी में सवार होकर जुलूस के रूप में। काले कोट वालों की भारी भरकम फौज उनके आगे-पीछे चलती है जिसका काम कानून की जर्जर दीवार में सेंधमारी करना है। कोई भी दांव न चले और इन्हें जेल जाना ही पड़ा तो फिर ऐसी व्यवस्था की जाती है कि मानो साहब यात्रा डॉट कॉम के हॉलीडे पैकेज पर जा रहे हों। जेल को फाइव स्टार टच दिया जाता है लेकिन साहब को इससे भी संतोष नहीं होता तो पहली पेशी में ही उनकी जमानत हो जाती है या फिर वे हॉस्पिटल में आराम फरमाने चले जाते हैं। जेल से छूटते ही उनकी इज्जत और बढ़ जाती है। कुशल क्षेम पूछने वालों का तांता लग जाता है।
और बेचारा आम आदमी? कई बार तो बिना कुछ किए-धरे ही उसे पुलिस धर लेती है। बिना एफआईआर दर्ज किए कई-कई दिन तक लॉपअप में रखा जाता है और बिना सर्फ लगाए धोबी-पछाड़ धुलाई होती है। घर का खाना और घरवालों से मिलना तो उसके लिए दिवास्वप्न है। उसकी पेशी पर पुलिस को तत्काल रिमांड मिल जाती है और इसके बाद तो पुलिस को थर्ड डिग्री का लायसेंस मिल जाता है। चाहे उसने जुर्म किया हो या नहीं, उसे कबूलना ही पड़ता है। वह इस लायक भी नहीं बचता कि हॉस्पिटल जा सके। समाज में उसकी और परिवार की इज्जत पर ऐसा दाग लग जाता है जिसे वो जिंदगी भर नहीं धो सकता। कुशल क्षेम पूछने की तो कोई हिम्मत करना नहीं, अलबत्ता ताने सुन-सुनकर उसके कान जरूर पक जाते हैं।
पटना के राहुल राज की बात ही लें... वह अपनी बात कहना चाहता था तो उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया। और मुंबई का राज जो हर रोज अपनी बातों से लोगों को छलनी कर रहा है, उसकी गर्दन नापने की बात पर मुंबई पुलिस को तो जैसे सन्निपात हो जाता है। दरअसल, राहुल राज उन लाखों लोगों का प्रतीक था जिन पर क्षेत्रीयता के आरोपों का गर्म लावा हर रोज डाला जा रहा है। अब वही लावा ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ा तो इसमें उसकी गलती कहां? मुख्य आरोपी तो लावा उंडेलने वाले हैं। लेकिन बिहारी राज का दुर्भाग्य कि वहीं के मुख्यमंत्री ने उसे मुर्गी की उपमा दे दी और मुंबइया राज को शेर माना जा रहा है। मुंबई पुलिस की भूमिका का अंदाज राज ठाकरे के साथ वाला फोटो देखकर लगाया जा सकता है।
पूरे समाज की यही हालत है कि दौलत की चमक के आगे ऐसे वीआईपीज का हर ऐब भी हुनर लगता है। बेहतर हो कि समाज और पुलिस को इतना ताकतवर बनाया जाए कि वो किसी आदमी की औकात को आंखों पर पट्टी बांधकर दौलत की तराजू में न तौले। और बिहार के राज से मुंबई के राज तक कानून एक सा पेश आए।
इस राज को इसलिए गोलियों से भून डाला गया क्योंकि वह बिहार से आकर मुंबई में एक बस को अगवा करना चाहता था। लेकिन उस राज का क्या जो पूरी मुंबई को अगवा करना चाहता है? जो बीसीयों बार सार्वजनिक रूप से विषवमन कर चुका है कि मुंबई उसके बाप की है? उसके इस पारिवारिक बड़बोलेपन के कारण मुंबई आकंठ जातीयता के जहर में डूब चुका है। इस जहर से मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम एक हैं का दावा करने वाले इस देश में दो तरह के कानून हैं। एक- सड़कों पर घिसटने वाले आम आदमी के लिए और दूसरा- वीआईपी के लिए। वीआईपी यानी वो- जो नेताजी हों, भाई-दादा हों, बिजनेसमैन हों या फिर जिनके बिस्तर में रूई की जगह रुपए भरे हों।
दूसरी तरह की उच्च क्वालिटी वाले महापुरुष की अव्वल तो गिरफ्तारी होती नहीं, बहुत ही जरूरी हुआ तो गिरफ्तारी की रस्म अदायगी कर दी जाती है लेकिन उन्हें ले जाया जाता है- खाकी वर्दी वालों की बग्घी में सवार होकर जुलूस के रूप में। काले कोट वालों की भारी भरकम फौज उनके आगे-पीछे चलती है जिसका काम कानून की जर्जर दीवार में सेंधमारी करना है। कोई भी दांव न चले और इन्हें जेल जाना ही पड़ा तो फिर ऐसी व्यवस्था की जाती है कि मानो साहब यात्रा डॉट कॉम के हॉलीडे पैकेज पर जा रहे हों। जेल को फाइव स्टार टच दिया जाता है लेकिन साहब को इससे भी संतोष नहीं होता तो पहली पेशी में ही उनकी जमानत हो जाती है या फिर वे हॉस्पिटल में आराम फरमाने चले जाते हैं। जेल से छूटते ही उनकी इज्जत और बढ़ जाती है। कुशल क्षेम पूछने वालों का तांता लग जाता है।
और बेचारा आम आदमी? कई बार तो बिना कुछ किए-धरे ही उसे पुलिस धर लेती है। बिना एफआईआर दर्ज किए कई-कई दिन तक लॉपअप में रखा जाता है और बिना सर्फ लगाए धोबी-पछाड़ धुलाई होती है। घर का खाना और घरवालों से मिलना तो उसके लिए दिवास्वप्न है। उसकी पेशी पर पुलिस को तत्काल रिमांड मिल जाती है और इसके बाद तो पुलिस को थर्ड डिग्री का लायसेंस मिल जाता है। चाहे उसने जुर्म किया हो या नहीं, उसे कबूलना ही पड़ता है। वह इस लायक भी नहीं बचता कि हॉस्पिटल जा सके। समाज में उसकी और परिवार की इज्जत पर ऐसा दाग लग जाता है जिसे वो जिंदगी भर नहीं धो सकता। कुशल क्षेम पूछने की तो कोई हिम्मत करना नहीं, अलबत्ता ताने सुन-सुनकर उसके कान जरूर पक जाते हैं।
पटना के राहुल राज की बात ही लें... वह अपनी बात कहना चाहता था तो उसे गोलियों से छलनी कर दिया गया। और मुंबई का राज जो हर रोज अपनी बातों से लोगों को छलनी कर रहा है, उसकी गर्दन नापने की बात पर मुंबई पुलिस को तो जैसे सन्निपात हो जाता है। दरअसल, राहुल राज उन लाखों लोगों का प्रतीक था जिन पर क्षेत्रीयता के आरोपों का गर्म लावा हर रोज डाला जा रहा है। अब वही लावा ज्वालामुखी बनकर फूट पड़ा तो इसमें उसकी गलती कहां? मुख्य आरोपी तो लावा उंडेलने वाले हैं। लेकिन बिहारी राज का दुर्भाग्य कि वहीं के मुख्यमंत्री ने उसे मुर्गी की उपमा दे दी और मुंबइया राज को शेर माना जा रहा है। मुंबई पुलिस की भूमिका का अंदाज राज ठाकरे के साथ वाला फोटो देखकर लगाया जा सकता है।
पूरे समाज की यही हालत है कि दौलत की चमक के आगे ऐसे वीआईपीज का हर ऐब भी हुनर लगता है। बेहतर हो कि समाज और पुलिस को इतना ताकतवर बनाया जाए कि वो किसी आदमी की औकात को आंखों पर पट्टी बांधकर दौलत की तराजू में न तौले। और बिहार के राज से मुंबई के राज तक कानून एक सा पेश आए।
10 comments:
बहुत प्यारी तस्वीर और बहुत दवंग भाषा /आपकी कठोरता स्वाभाविक है ''जो सर से लेकर पैर तक खुद्दार नहीं है /हाथों में कलम लेने का हकदार नहीं है /बधाई /दीवाली की शुभकामनाये
Excellent post!! Infact it really sad to see such a sad state of affairs. I watched the footage of Rahul raj's encounter the whole evening yesterday and was very hurt, resentful and upset at the grave turn of events. rahul seemed like a innocent boy next door who was perhaps miled. But a little emotinal coaxing would have helped the police to have him surrendered.
I guess if it all goes on like this then very soon we will need visas to visit another state. And if that is the case then first of all our armed forces who serve the country irrespctive of their caste and creed should just simply refuse to do so......
महेश भाई
बहुत अच्छा कहा आपने। राजनीति हो या कुछ और, उसका पैमाना कानून या नियम-कायदे न होकर सिर्फ और सिर्फ चेहरे होते हैं। आम आदमी और अति विशिष्टजन के लिए कम से कम हमारे देश में तो कानून अलग-अलग ही नजर आता है। राज गलत था या ठीक है इसका निर्धारण हम कानून पर छोड़ देते हैं, मगर जिस तरह से बिहारी की तुलना मुर्गी से और राज ठाकरे की तुलना शेर से की गई है उसे कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। बेहतर होता आपने इस लेख के साथ जो फोटो दिए हैं उसका चेहरा एक-सा होता।
लगे रहो..लिखते रहो..
दीपावली की शुभकामनाएं
सही बात है। वैसे मुर्गी, शेर और श्वान की भूमिका में सभी फिट बैठते हैं। क्रम से सभी को इसमें रख देना चाहिए।
दिवाली की शुभकामनाएँ!
-प्रकाश
wishing u happy diwali
keep on writing
thier is fire when desire
regards
bahut accha lekh
regards
sahi kaha bhai.
Bhai sahab aapki baat man ko chu gai. Aisa lagta hai ye sabke mind me to hai par har koi kah nahi pata. Aapne achha tanabana buna.
-Akhilesh Saraswat.
क्या बात है बंधु
एकदम सटीक सामयिक एवं सार्थक चिंतन
साधुवाद
nice post
Shyari Is Here Visit Jauru Karo Ji
http://www.discobhangra.com/shayari/sad-shayri/
Etc...........
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